Tuesday, March 16, 2010

मेरा संदेश छोटा सा है, आनंद से जीओ। और जीवन के समस्तस रंग को जीओ, सारे स्वकरों को जाओ। कुछ भी निषेध नहीं करना है। जो भी परमात्माह का है, शुभ है। जो भी उसने दिया है, अर्थपूर्ण है। उसमें से किसी भी चीज का इनकार करना, परमात्मा को ही इनकार करना है, नास्तिकता है। और तब एक अपूर्व क्रांति घटती है। जब तुम सबको स्वी कार कर लेते है। और आनंद से जीने लगते है, तुम्हादरे भीतर रूपांतरण की प्रक्रिया शुरू होती है। तुम्हादरे भीतर की रसायन बदलती है—क्रोध करूणा बन जाता है। काम राम बन जाता है। तुम्हामरे भीतर कांटे फूलों कि तरह खिलने लगते है।
–आशो

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